दो अलग-अलग धर्मों और दो अलग - अलग धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का पालन करने वाले लोग, रमजान के दौरान रोज़ा और नवरात्रि के उपवास, वैसे तो एक-दूसरे से कुछ अलग होते हैं, लेकिन दोनों ही नियम-कायदों पर इतने सख्त हैं कि एक साधना से कम नहीं । इस प्रक्रिया को करने से लोगों में धर्म की पीड़ा, उन्हें अधिक कोमल हृदय वाला और संवेदनशील बनाती है । स्वास्थ्य की दृष्टि से रोज़ा और उपवास के फायदे बहुत महत्वपूर्ण हैं । यह कड़ाई से अनुशासित अभ्यास आपसी सम्मान और सद्भाव को बढ़ावा देता है। इस बार रमजान और नवरात्रि का महीना एक साथ आया है।
परंपराओं के अनुसार वैदिक युग से पहले ही नवरात्रि पूजा शुरू हो गई थी जबकि रमजान 6वीं शताब्दी में इस्लाम के पवित्र महीने के रूप में शुरू हुआ। दोनों त्योहारों की तिथियां चंद्र के आधार पर निर्धारित की जाती हैं। दोनों पर्व शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि पर बल देते हैं। आस्था और पूजा के माहौल के कारण लोग अपने भगवान के करीब पहले से अधिक हो जाते हैं जबकि नियमों का पालन करने से उन्हें शारीरिक और मानसिक शुद्धता भी मिलती है । इस्लाम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उपवास (रोज़ा) का अर्थ केवल भूखा-प्यासा रहना नहीं है, बल्कि उपवास का अर्थ घृणा से छुटकारा, लालच और झूठ से बचना है। नवरात्रि में भी बुरी आदतों को छोड़ना, सादा जीवन जीना और किसी को दुःख न देना धार्मिक साधना का अंग माना जाता है ।
रमज़ान के महीने में राजनीतिक पार्टियों की इफ्तार पार्टियां तो आम हैं, ऐसे हिंदू भाई भी आपको अपनी–अपनी गलियों में मिल जाएंगे जो रमज़ान के महीने में अपने मुस्लिम भाइयों के लिए इफ्तार की दावत का आयोजन करते हैं, उनकी दृष्टि में यह बहुत ही शुभ कार्य है। दूसरी ओर, आपको मुसलमान भी मिल जाएंगे, जो अपने हिंदू भाइयों के साथ पूरी श्रद्धा के साथ नवरात्रि मनाते हैं। हालाँकि समय-समय पर साम्प्रदायिक झगड़ों की ख़बरें आती रहती हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में रोज़ा और नवरात्र मनाने का चलन खासकर युवाओं में ज़ोर पकड़ रहा है। सोशल मीडिया ने भी इन युवाओं को जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है। पिछले साल सोशल मीडिया पर सामने आई एक रिपोर्ट को अनोखे उदाहरण के तौर पर उद्धृत किया जा सकता है।
संयोग से, जम्मू का एक युवा सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता लाक- डाउन शुरू होने पर कश्मीर में फंस गया। वहां उसे एक स्थानीय मुस्लिम परिवार ने आश्रय दिया और इस बीच जब नवरात्रि शुरू हुई, तो परिवार ने उनके लिए पूजा और फलों की व्यवस्था भी की। युवक करीब 40 दिन परिवार के साथ रहा । इसलिए, रमज़ान के दौरान, जो कुछ दिनों बाद शुरू हुआ, उसे रोज़े के महत्व को गहराई से समझने का अवसर मिला। नवरात्र, जो दशहरा से पहले होता है और विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के अवसर पर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, दोनों धर्मों के लोगों के जीवन का एक अभिन्न अंग है। मां दुर्गा की मूर्तियों से लेकर पूजा पंडाल की साज-सज्जा और यहां तक कि कई जगहों के प्रबंधन की जिम्मेदारी मुसलमानों के हाथ में होती है।
ये दोनों त्योहार न सिर्फ दोनों धर्मों के लोगों को एक-दूसरे के करीब ला रहे हैं बल्कि समाज के लिए रोज़गार का अहम जरिया भी हैं। हालाँकि, हमारी एक सामान्य धारणा है कि देश में त्यौहार मनाने के पीछे एक मकसद ऐसी आबादी को रोज़गार के अवसर प्रदान करना है जिसके पास रोज़गार के सीमित संसाधन हैं । एक और दिलचस्प बात यह है कि केवल मूर्ति बनाना ही नहीं बल्कि माता को चढ़ाए जाने वाले अन्य सामान भी मुसलमानों द्वारा तैयार किए जाते हैं। वहीं दूसरी ओर ईद मनाने वालों की मिठास हिंदू कारीगरों के बिना अधूरी रहती है। लखनऊ, कानपुर, बनारस, इलाहाबाद जैसे शहरों में बड़ी संख्या में हिंदू कारीगर तीन महीने पहले से ही अपनी सेवाएं देना शुरू कर देते हैं । यह कार्य पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है।
रमज़ान हो या नवरात्रि, खान-पान से जुड़े नियम - कायदे सेहत के लिहाज से काफी अहम माने जाते हैं । इसमें तीन बातों पर विशेष रूप से ज़ोर दिया गया है, एक कम खाया जाए, लंबे समय तक कुछ भी नहीं खाना और जो खाया जाए वह सादा और पौष्टिक होना चाहिए। कई अध्यन बताते हैं कि रोज़ा हृदय, मस्तिष्क और पाचन तंत्र के लिए अच्छा होता है। शोध से पता चलता है कि आठ सप्ताह तक एक दिन के अत्राल से रोज़ा रखने से खराब कोलेस्ट्रॉल का खतरा 25 प्रतिशत तक कम हो सकता है। रोज़े में खजूर का प्रयोग किया जाता है और व्रतों में सेंधा नमक का प्रयोग इस प्रकार किया जाता है कि इसके बिना ये पर्व अधूरे से लगते हैं। अगर इन दोनों चीजों की बात करें तो इन्हें अपने आप में इलाज कहा जा सकता है। आयुर्वेद में खजूर को पौष्टिक, बलवर्धक बताया गया है। खनिज, फाइबर और विटामिन से भरपूर खजूर को एक संपूर्ण आहार माना जाता है। खजूर से व्रत तोड़ने पर ज़ोर देते हुए कहा गया है कि जो खजूर से व्रत तोड़ता है उसके घर में बरकत होती है। सेंधा नमक की बात करें तो यह किसी वरदान से कम नहीं । इसमें आम नमक से कम सोडियम क्लोराइड होता है और आयरन, कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम जैसे दर्जनों मिनरल्स होते हैं । यह पाचन में सुधार और रक्तचाप को नियंत्रित करने में कारगर है ।
रमज़ान के दौरान हिंदू भाइयों द्वारा मंदिरों में इफ्तार का आयोजन किए जाने और नौरात्रि में मुस्लिमों द्वारा प्रसाद बांटे जाने की भी खबरें हैं। यही विविधता और समरसता हमारे देश की ताक़त है |
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गोमती नदी के किनारे शिव मंदिर में एक तरफ पूजा की घंटियां बज रही हैं तो दूसरी तरफ अल्लाहु अकबर की आवाज़। यह नज़ारा लोगों को तब देखने को मिला, जब मनकामेश्वर मंदिर में मुसलमानों के लिए इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया और शाम को रोज़ेदारों ने आरती और नमाज़ के साथ अपना रोज़ा खोला। शहर में शायद यह पहला मौका था जब किसी मंदिर में इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया । गोमती नदी के तट पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर हिंदू आस्था का प्रमुख केंद्र है। इफ्तार का आयोजन मंदिर की महंत दिव्या गिरि ने किया था । इफ्तार में सैकड़ों मुस्लिम रोजेदार शामिल हुए। इसमें शिया और सुन्नी मुसलमानों के विद्वान भी उपस्थित थे ।
इफ्तार को लेकर महंत दिव्या गिरी ने कहा, 'सभी धर्म प्रेम और सद्भाव का संदेश देते हैं। कई बार मुस्लिम भी हिंदू त्योहारों के अवसर पर धार्मिक समारोहों में भाग लेते हैं । पुजारियों, इमामों और महंतों को भाईचारे और शांति का संदेश देना चाहिए। सुबह से शाम तक रोज़ेदारों की सेवा करने का फल मिलता है । महंत दिव्या गिरि ने कहा कि पांच सौ रोज़ेदारों के लिए इफ्तार का इंतजाम किया गया था और करीब इतने ही लोग शामिल हुए थे। उनके मुताबिक मंदिर की तीन रसोइयों में सुबह से ही तैयारियां शुरू हो गई थीं । मनकामेश्वर मंदिर घाट पर पहली बार हो रही इस इफ्तार पार्टी में मुस्लिम धार्मिक नेताओं के साथ बड़ी संख्या में उपवास करने वाले लोगों ने भाग लिया। मंदिर के इस कदम की सभी ने तारीफ की। एक कार्यकर्ता मुहम्मद फुरकान ने कहा, "हमारा सपना है कि न केवल लखनऊ में, बल्कि पूरे देश में सभी धर्मों के लोग एक साथ हर त्योहार मनाएं।" इसी तरह, अयोध्या में एक प्राचीन मंदिर के महंत ने स्थानीय मुसलमानों को इफ्तार कराया । इफ्तार का आयोजन राम जन्मभूमि मंदिर के पास स्थित सरजू कुंज मंदिर के महंत ने किया था। रोज़ेदारों ने इफ्तार के साथ मंदिर परिसर में नमाज़ भी अदा की।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात में भी इफ्तार के लिए मुसलमानों के लिए मंदिर के दरवाजे खोल दिए गए। वुडगाम तालुका गांव के लगभग 100 मुस्लिम निवासियों को रमज़ान के महीने में मगरिब की नमाज़ और इफ्तार के लिए वृंदा वीर महाराज मंदिर परिसर में आमंत्रित किया गया था। इसी तरह आज-कल टाइम्स ऑफ इंडिया का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें केरल के मलाप्पुरम मंदिर में आम मुसलमानों के लिए सामूहिक इफ्तार का आयोजन किया जाता है, जिसमें हिंदू - मुस्लिम एकता की खूबसूरत मिसाल देखने को मिलती है । ऐसे कार्यक्रमों से आपसी प्रेम बढ़ता है और समाज में सकारात्मक संदेश जाता है ।
(आलेख : राणा समीर)
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