प्रेम में झूठे अभिमान का कोई स्थान नहीं होता। प्रेम में हार जीत नहीं होती, यहां तो ’स्वयं’ को हार कर प्रियतम के हृदय को जीता जाता है।
ऐसे ही एहसासों को अपनी इस सुंदर रचना में व्यक्त किया है नई दिल्ली की युवा कवयित्री पारुल राज जी ने। कविता का शीर्षक है, ’अनूठा इश्क़’।
💞अनूठा इश्क़💞
जानती हूँ कि वो
प्यार करता नहीं,
फिर भी उसकी
रज़ा में है मेरी रज़ा।
उलझनें तो बहुत हैं
इधर भी उधर भी,
ख़ता उसकी नहीं,
एहसान मेरा भी नहीं।
चलो दोनों मिल कर
एक कहानी लिखें,
एक नई इबादत की
निशानी लिखें।
मौन वो भी है,
तो तन्हा मैं भी हूँ,
क्यों ना खुद का 'स्व'
और 'मैं' भूल कर।
एक विरले और
अनूठे इश्क़ की,
ख़ुद को घायल कर
उसके पीर आत्मसात की,
मीरा और राधा के
अविरल प्रेम सी,
कहानी लिखें।
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