आज़मगढ़ : बृजेश श्रीवास्तव। सोमवार 20 फरवरी 2023। अँगना में नाचेला अँजोरिया"(भोजपुरी गीत-संग्रह) का भोजपुरी गौरव सम्मान-2023 से सम्मानित लखनऊ के वरिष्ठ कवि आजमगढ़ के मूल निवासी इं० उदयभान पाण्डेय 'भान' का अभिनंदन करतालपुर शाकुंतलम हाल आजमगढ़ में अरविंद चित्रांश के संयोजन में अन्तर्राष्ट्रीय भोजपुरी संगम भारत,पूर्वाञ्चल,उत्तर प्रदेश एवं राष्ट्रीय कला सेवा संस्थान आज़मगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। जिसकी अध्यक्षता डॉ शशि भूषण 'प्रशांत' पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी, सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं वरिष्ठ रंगकर्मी ने किया और मुख्य अतिथि-पं अवधनाथ तिवारी सुप्रसिद्ध समाजसेवी थे। सफल संचालक कवि डॉ० ईश्वरचंद्र त्रिपाठी और धन्यवाद डॉ० धीरेंद्र पांडेय ने किया।
लोकार्पण और सम्मान समारोह का संयोजन एवं निर्देशन सुप्रसिध्द रंगकर्मी,समाजसेवी एवं राष्ट्रीय कला सेवा संस्थान आज़मगढ़ सचिन/निदेशक अरविंद चित्रांश ने कहां की भोजपुरी भाषा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान देने एवं भोजपुरी में सुन्दर साहित्य-सृजन के लिए इं० उदयभान पाण्डेय 'भान'को संस्था द्वारा "भोजपुरी गौरव सम्मान-2023"से सम्मानित किया गया।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे डाॅ शशिभूषण 'प्रशान्त' ने अपने आशीर्वचन से अभिसिंचित करते हुए सफल आयोजन के लिए सभी की सराहना की।उन्होंने यह भी कहा कि गाँव की विलुप्त हो रही गीत-विधाओं, जैसे सोहर, कजरी, चैता, धोबिया, कहरवा आदि लोकगीतों के माध्यम से कवि 'भान' ने लोक-संस्कृति एवं परम्पराओं को पुनर्जीवित करने का सराहनीय प्रयास किया है। प्रेमचंद यादव,डॉ गौरव यादव, हर्षित, दिव्या, अंकिता, समृद्धि, अंकित ने सक्रिय सहयोग देकर कार्यक्रम को सफल बनाया।
कृतिकार इं० उदयभान पाण्डेय 'भान', ने अपने उद्बोधन के दौरान कुछ रचनाओं का सस्वर पाठ किया। उन्होंने कहा कि महापण्डित राहुल सांस्कृतायन और अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की कर्मभूमि, अपने गृह जनपद आज़मगढ़ में उनकी भोजपुरी पुस्तक का लोकार्पण अनेकों विद्वानों द्वारा किया गया है,जिससे वह अत्यन्त गौरवान्वित हैं। अपनी भोजपुरी कविता के माध्यम से उन्होंने अपना परिचय कुछ यूँ दिया :-
"गाँव-गिरावँ कऽ सीधा-साधा लइका, राम दुहाई।
प्यार-मोहब्बत, पुरखन कै आसीस, हमार कमाई,
आज अँजोरिया सगरे अँगना, नाचि-नाचि के गाई।
'भान', मगन छवले बा ओनपर भोरवा कै अरुनाई।।
इसी क्रम में उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना मधुर स्वर में गाकर दर्शकों को भावविभोर कर दिया:-
"हमरे देसवा के मटिया पियार लागेला।
जहाँ जाईं तहाँ लोगवा हमार लागेला।।
अँगनइयाँ आपन, जिलवे-जवार लागेला।
जहाँ जाईं तहाँ लोगवा हमार लागेला।।"
इतने सुन्दर आयोजन के लिए उन्होंने श्री अरविन्द चित्रांश जी का एवं सबकी सक्रिय सहभागिता के लिए सभी गणमान्य अतिथियों तथा समस्त गुरुजनों आभार व्यक्त किया।
मुख्य वक्ता डाॅ द्विजराम यादव ने पुस्तक का समीक्षात्मक उद्बोधन किया। रचनाओं के विभिन्न पहलुओं के विषय में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि समस्त गीत गाँव के परिवेश की सोंधी मिट्टी की महक से ओतप्रोत हैं जो समाज को एक सार्थक संदेश देने में सर्वथा सक्षम हैं। लेखक के बचपन से हाईस्कूल तक के सहपाठी श्री सत्य नारायण पाण्डेय,आईटी, काशी हिन्दू विश्विद्यालय के पूर्व प्राध्यापक भी पधारे और अपने संस्मरण साझा किये। विजेन्द्र श्रीवास्तव ने लोकार्पित पुस्तक से रचना का पाठ किया। अग्रिम कड़ी में डॉ प्रेम चन्द्र यादव, प्रो. डिग्री कालेज मालटारी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि कवि की रचनायें सहज और अपनी माटी से जुड़ी होने के कारण पाठकों के हृदय-मन को अवश्य उद्वेलित करेंगी।
विशिष्ट अतिथियों ने भी अपने संबोधन में प्रसन्नता व्यक्त करते हुए ऐसे कार्यक्रमों के होते रहने का आह्वान किया जिससे भोजपुरी भाषा के प्रचार-प्रसार के साथ ही लेखकों-कवियों का उत्साह-वर्धन होता रहे। डॉ दुर्गाप्रसाद अस्थाना जी ने कहा कि सभी रचनायें कवि के संवेदनशीलता को प्रदर्शित करती हैं। उन्होंने कवि के गीत "गउवां के चँपले बा पछुआं बयरिया, कहीं मोर गउवां हेराइल धनियाँ.." का ज़िक्र करते हुए कहा कि 'भान' को अपने गाँव की सभ्यता-संस्कृति खो जाने का डर सता रहा है, जो चिन्ता का विषय है।




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